जब 70 की उम्र में आनंद महिंद्रा ने साझा की अपनी वर्कआउट रूटीन: ‘मैं कोई फिटनेस गुरु नहीं हूं, लेकिन…’

70 साल की उम्र में जिस तरह से उद्योगपति आनंद महिंद्रा अपनी सेहत का ख्याल रखते हैं, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने एक बार अपनी फिटनेस से जुड़ी जानकारी साझा करते हुए बताया था कि वे हर हफ्ते अपनी “फिटनेस रूटीन” को रोटेट करते हैं।
आनंद महिंद्रा ने 2022 में एक एक्स (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट के जवाब में लिखा था, “मैं कोई फिटनेस गुरु नहीं हूं, लेकिन मैं अपनी साप्ताहिक फिटनेस रूटीन को कार्डियो-वस्कुलर (स्विमिंग/एलिप्टिकल्स), मसल टोनिंग (वेट ट्रेनिंग), और स्ट्रेचिंग (योग) के बीच बदलता रहता हूं। हालांकि, मेरी डेली हेल्थ रूटीन का सबसे अहम हिस्सा है हर सुबह 20 मिनट का मेडिटेशन।”
उनके इस बयान से यह समझने का अच्छा मौका मिलता है कि 70 की उम्र के बाद भी ऐसा संतुलित वर्कआउट रूटीन कैसे प्रभावी हो सकता है—खासकर उस 20 मिनट के मेडिटेशन पर ज़ोर देते हुए, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक गहरा आधार बनाता है।
ईवॉल्व फिटनेस के संस्थापक वरुण रत्तन का कहना है कि बुजुर्गों की फिटनेस रूटीन में आमतौर पर स्ट्रेंथ ट्रेनिंग की कमी देखी जाती है।
उन्होंने कहा, “60 की उम्र के बाद मांसपेशियों की ताकत और हड्डियों की घनत्व (Bone Density) में गिरावट ज़्यादा तेज़ी से होने लगती है। ऐसे में बढ़ती उम्र के साथ-साथ रेसिस्टेंस ट्रेनिंग और भी ज़रूरी हो जाती है।”
वरुण रत्तन के अनुसार, “हर सप्ताह 2 से 4 दिन वेट ट्रेनिंग या रेसिस्टेंस बैंड का उपयोग करना चाहिए। यह न केवल बुजुर्गों की स्वतंत्रता को बढ़ाएगा बल्कि उनकी मानसिक क्षमता (Cognition) को भी बेहतर बनाएगा।”
स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के साथ योग को भी शामिल करें ताकि लचीलापन और संतुलन बना रहे। वरुण रत्तन कहते हैं, “सचेतता के साथ हरकत करें, सांस और शरीर की गति का तालमेल बिठाएं ताकि एक शांत और सकारात्मक ऊर्जा विकसित हो सके।”
उनके अनुसार, लो-इम्पैक्ट कार्डियो जैसे स्विमिंग और एलिप्टिकल मशीन पर वर्कआउट जोड़ों पर अधिक दबाव नहीं डालते, दिल को मजबूत बनाते हैं और सहनशक्ति (endurance) को बेहतर करते हैं। रत्तन बताते हैं, “ऐसी गतिविधियां हफ्ते में 3 से 5 बार एक समान, बातचीत के लायक रफ्तार पर करना दिल की सेहत के लिए बेहद लाभकारी होता है।”
क्या है सबसे ज़्यादा फायदेमंद?

वरुण रत्तन के अनुसार, दिन की शुरुआत 20 मिनट के मेडिटेशन से करना ठीक उसी तरह है जैसे अपने अंदरूनी ‘वाद्य यंत्र’ को सुर में लाना और पूरे दिन की धुन तय करना।
वे कहते हैं, “जैसे शरीर को भोजन की ज़रूरत होती है, वैसे ही मन और आत्मा को शांति की आवश्यकता होती है। मेडिटेशन वही पोषण देता है। यहीं से भावनात्मक उपचार की शुरुआत होती है। उम्र बढ़ने के साथ मन में सूक्ष्म संस्कार, लगाव और डर जमा होते जाते हैं। मेडिटेशन इन धुंधली परतों को साफ करता है और आपको प्रतिक्रिया की बजाय सजगता से जीने में मदद करता है। यह जीवन ऊर्जा (vitality) और रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) को भी बढ़ा सकता है।”