गाज़ा और लेबनान में बढ़ता संघर्ष

पश्चिम एशिया एक बार फिर गंभीर तनाव की चपेट में है, जहां गाज़ा और लेबनान में इज़राइल और उसके विरोधी गुटों के बीच संघर्ष दिन-ब-दिन तीव्र होता जा रहा है। गाज़ा पट्टी में हमास और इज़राइली सेना के बीच रॉकेट हमलों और हवाई हमलों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। वहीं, उत्तरी सीमा पर लेबनान स्थित हिज़बुल्लाह संगठन भी इज़राइली ठिकानों को निशाना बना रहा है, जिससे हालात और बिगड़ते जा रहे हैं।
इस संघर्ष में अब तक सैकड़ों नागरिकों की मौत हो चुकी है और हजारों घायल हुए हैं। सीमावर्ती इलाकों से बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया है। स्कूल, अस्पताल और अन्य जरूरी सुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। इज़राइल ने गाज़ा में बड़े पैमाने पर बमबारी की है, वहीं लेबनान के दक्षिणी हिस्से में भी सैन्य कार्रवाई तेज कर दी गई है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बढ़ते तनाव को लेकर गहरी चिंता जता रहा है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देश शांति की अपील कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान सामने नहीं आया है। विश्लेषकों का मानना है कि यदि जल्द ही कूटनीतिक हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो यह संघर्ष एक व्यापक क्षेत्रीय युद्ध का रूप ले सकता है। गाज़ा और लेबनान में जनता भय और अनिश्चितता के माहौल में जी रही है, और दुनिया एक बार फिर एक मानवीय त्रासदी की आशंका से जूझ रही है।
1. संघर्ष की ताज़ा स्थिति: क्या हो रहा है अभी?
गाज़ा और लेबनान के बीच इज़राइल का जारी सैन्य संघर्ष अब एक गंभीर मोड़ पर पहुंच चुका है। गाज़ा पट्टी में इज़राइली डिफेंस फोर्स (IDF) ने हाल ही में कई बड़े ऑपरेशन शुरू किए हैं, जिनमें शुजाइया, तल अल-हवा और नेटज़ारिम कॉरिडोर जैसे इलाकों को निशाना बनाया गया है। इन क्षेत्रों में हमास के ठिकानों, सुरंगों और हथियार डिपो को नष्ट किया गया है। वहीं हमास की ओर से भी इज़राइली शहरों पर रॉकेट हमले और छिपकर किए जा रहे हमले बदस्तूर जारी हैं, जिससे आम नागरिकों में दहशत का माहौल बना हुआ है।

उत्तरी सीमा पर लेबनान स्थित हिज़बुल्लाह संगठन ने इज़राइल के सीमावर्ती इलाकों पर मिसाइल, ड्रोन और एंटी-टैंक हमलों की संख्या बढ़ा दी है। जवाब में इज़राइल ने लेबनान के दक्षिणी इलाकों में हवाई हमले और तोपों से गोलाबारी की है। इस क्षेत्र में हालात बेहद तनावपूर्ण हैं और दोनों ओर से भारी नुकसान की खबरें सामने आ रही हैं।
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन शांति वार्ता की अपील कर रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है। संघर्ष की यह ताज़ा स्थिति न केवल मानवीय संकट को और गहरा कर रही है, बल्कि पूरे पश्चिम एशिया क्षेत्र को एक और संभावित युद्ध की ओर धकेल रही है। हालात पर कड़ी निगरानी रखना अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बड़ी चुनौती बन चुका है।
2. गाज़ा पट्टी में इजरायली हवाई हमले और जवाबी कार्रवाई
गाज़ा में इजरायली वायुसेना ने हाल के दिनों में कई तीव्र हवाई हमले किए हैं, जिनका उद्देश्य हमास के ठिकानों, सुरंगों और मिसाइल लॉन्चिंग साइट्स को नष्ट करना रहा है। जवाब में हमास ने भी इज़राइल के दक्षिणी इलाकों पर रॉकेट दागने शुरू कर दिए हैं। इस संघर्ष में दोनों ओर से आम नागरिकों की जानें गई हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इसे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन करार दिया है। गाज़ा की घनी आबादी में हमले होने से जनहानि और डर का माहौल तेजी से बढ़ रहा है।
3. लेबनान में हिज़बुल्लाह और इज़राइल के बीच सीधी मुठभेड़
लेबनान की सीमा पर हिज़बुल्लाह और इज़राइली सेनाओं के बीच सीधी गोलीबारी की घटनाएं तेज़ हो गई हैं। हिज़बुल्लाह ने हाल ही में इज़राइल के सैन्य ठिकानों पर कई मिसाइलें दागी हैं, जिनका IDF ने हवाई हमलों और भारी गोलाबारी से जवाब दिया है। यह टकराव केवल सीमित क्षेत्रों में नहीं रहा, बल्कि अब यह उत्तर में फैले कई गांवों तक पहुँच चुका है। इसने लेबनानी नागरिकों को भी जबरन घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया है।
4. सीमा क्षेत्रों में नागरिकों की स्थिति और पलायन
सीमा क्षेत्रों में रहने वाले हज़ारों लोग अपने घरों से पलायन कर चुके हैं। गाज़ा में लगातार बमबारी और लेबनान की सीमा पर मिसाइलों के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। स्कूल, अस्पताल, और बाजार पूरी तरह बंद हैं। यूनिसेफ और रेड क्रॉस जैसी एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि यदि मानवीय सहायता जल्द नहीं पहुंचाई गई, तो वहां भुखमरी और बीमारियों का खतरा गहरा सकता है।
5. इज़राइली डिफेंस फोर्सेज़ (IDF) की तैनाती और रणनीति
IDF ने दक्षिणी गाज़ा और उत्तरी लेबनान के पास बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती कर दी है। जमीन पर अभियान के साथ-साथ इजरायली ड्रोन और फाइटर जेट लगातार निगरानी कर रहे हैं। इजराइल ने कहा है कि वह हमास और हिज़बुल्लाह के हर संभावित खतरे को खत्म करने तक पीछे नहीं हटेगा। इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि इज़राइल दीर्घकालिक सैन्य अभियान की तैयारी कर चुका है।
6. हिज़बुल्लाह की धमकियां और मिसाइल हमले
हिज़बुल्लाह ने हाल ही में इज़राइल को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि अगर गाज़ा पर हमले नहीं रोके गए, तो वह पूरे ताकत से जवाब देगा। लेबनान की धरती से इज़राइली सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और रॉकेट हमले पहले से ही तेज़ हो चुके हैं। संगठन ने आधुनिक ड्रोन और गाइडेड मिसाइल तकनीक का भी इस्तेमाल किया है, जिससे इज़राइल की उत्तरी सीमा पर स्थित कई बेस और रडार सिस्टम को नुकसान पहुंचा है। हिज़बुल्लाह के इस रवैये से यह स्पष्ट हो गया है कि वह गाज़ा के समर्थन में किसी भी हद तक जा सकता है। वहीं, इज़राइल ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताते हुए लेबनान के अंदर गहराई तक हमले शुरू कर दिए हैं। यह टकराव अब धीरे-धीरे सीमित नहीं रह गया है, बल्कि एक पूर्ण युद्ध के कगार पर खड़ा है। हिज़बुल्लाह के बयान, “अगर एक इंच लेबनानी ज़मीन पर हमला हुआ तो हम तेल अवीव तक पहुंच जाएंगे,” ने मध्य पूर्व में तनाव को और अधिक भड़काया है। दोनों पक्षों की आक्रामक नीति और बयानबाज़ी से स्थिति में शांति की कोई उम्मीद फिलहाल दिखाई नहीं दे रही।
7. संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रतिक्रियाएं
गाज़ा और लेबनान में बढ़ते संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र ने गंभीर चिंता जताई है। महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इज़राइल और हमास दोनों से संयम बरतने की अपील की है और संघर्ष विराम की मांग की है। वहीं, रेड क्रॉस और डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स जैसी संस्थाओं ने मानवीय सहायता की तत्काल जरूरत बताई है, विशेषकर गाज़ा में जहाँ खाद्य पदार्थ, पीने का पानी और दवाइयों की भारी कमी हो गई है। यूरोपीय संघ ने भी इज़राइल से अनुरोध किया है कि वह नागरिक इलाकों में सैन्य कार्रवाई से बचे, जबकि अमेरिका ने अपने नागरिकों को लेबनान और गाज़ा न जाने की सलाह दी है। अरब लीग और ओआईसी ने इज़राइल की कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करार दिया है और फिलिस्तीनियों के समर्थन में संयुक्त बैठक बुलाने का ऐलान किया है। अब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पर दबाव है कि वह मध्यस्थता करे और इस संघर्ष को एक मानवीय आपदा में बदलने से रोके।
8. फिलिस्तीन के अंदर हुमनिटेरियन संकट की भयावहता
गाज़ा में चल रहा संघर्ष अब एक बड़े मानवीय संकट में बदल चुका है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, गाज़ा की 80% से अधिक आबादी को खाद्य सुरक्षा नहीं है। बच्चों में कुपोषण बढ़ रहा है, और अस्पतालों में दवाओं की भारी कमी है। बिजली आपूर्ति बाधित है, जल-स्रोत दूषित हो चुके हैं और हजारों परिवार विस्थापित हो चुके हैं। कई स्कूलों और धार्मिक स्थलों को आश्रय शिविर में बदल दिया गया है। स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चरमरा गई हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में डॉक्टर भी प्रभावित हुए हैं। इस स्थिति में कई देशों ने सहायता भेजने की कोशिश की है, लेकिन इज़राइल द्वारा बनाए गए ब्लॉकेड और हमलों के कारण राहत सामग्री का पहुँचना बेहद कठिन हो गया है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने चेताया है कि यदि जल्द सहायता नहीं पहुंची तो हजारों नागरिकों की जान को खतरा हो सकता है। यह स्थिति दर्शाती है कि संघर्ष अब सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि एक मानवीय त्रासदी बन चुका है।
9. लेबनान की आंतरिक राजनीति पर संघर्ष का असर
लेबनान पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। ऐसे में इज़राइल–हिज़बुल्लाह टकराव ने देश के अंदरूनी हालात को और बिगाड़ दिया है। लेबनान की सरकार हिज़बुल्लाह के बढ़ते प्रभाव को रोक पाने में असमर्थ दिख रही है। कई राजनीतिक दल हिज़बुल्लाह की कार्रवाइयों से असहमत हैं, लेकिन खुलकर विरोध करने से डरते हैं। वहीं, आम जनता बेरोजगारी, महंगाई और बिजली संकट जैसी समस्याओं के बीच अब युद्ध का खतरा भी झेल रही है। राजनीतिक अस्थिरता के चलते राहत कार्यों में बाधा आ रही है, और सरकार का नियंत्रण सीमावर्ती क्षेत्रों में लगभग समाप्त हो चुका है। इस संघर्ष ने लेबनान को एक बार फिर गृहयुद्ध जैसे हालात की ओर धकेल दिया है।
10. इजरायल की घरेलू राजनीति में उथल-पुथल
इज़राइल में भी इस संघर्ष ने राजनीतिक अस्थिरता बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि उन्होंने गाज़ा और लेबनान दोनों मोर्चों पर उचित रणनीति नहीं अपनाई। देश के भीतर सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं, जबकि एक वर्ग नेतन्याहू की सैन्य नीति का समर्थन कर रहा है। सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें लोग युद्ध की जगह कूटनीति को प्राथमिकता देने की मांग कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि इज़राइल में जनता युद्ध को लेकर पूरी तरह बंटी हुई है। नेतन्याहू की लोकप्रियता गिर रही है और चुनावी समीकरणों पर भी इसका सीधा असर पड़ सकता है। इस समय इज़राइल सरकार एक बड़े दबाव में है – उसे देश की रक्षा भी करनी है और जनता का भरोसा भी बनाए रखना है।
11. ईरान की भूमिका और उसके बयान
मध्य पूर्व के इस उभरते संघर्ष में ईरान की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। ईरान हमास और हिज़बुल्लाह का पुराना समर्थनकर्ता रहा है, और इज़राइल के खिलाफ उसकी नीति हमेशा आक्रामक रही है। हाल ही में ईरानी विदेश मंत्री ने इज़राइल पर “जघन्य युद्ध अपराध” करने का आरोप लगाया और मुस्लिम देशों से एकजुट होकर प्रतिक्रिया देने की मांग की। ईरान ने यह भी संकेत दिए हैं कि यदि संघर्ष बढ़ता है तो वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप कर सकता है। इसके अलावा, कई खुफिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि हिज़बुल्लाह को मिले कुछ आधुनिक हथियार ईरान से पहुंचे हैं। इस बात ने इज़राइल की चिंता और बढ़ा दी है। अमेरिका और पश्चिमी देश लगातार ईरान को चेतावनी दे रहे हैं कि वह स्थिति को और न भड़काए। लेकिन ईरान अपने तेवर में नरमी लाने को तैयार नहीं है। वह इसे फिलिस्तीन के समर्थन की नैतिक जिम्मेदारी बता रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ईरान सक्रिय रूप से युद्ध में कूदता है तो पूरा पश्चिम एशिया युद्ध की चपेट में आ सकता है।
12. अमेरिका और यूरोपीय देशों की मध्यस्थता की कोशिशें
संघर्ष को कूटनीतिक हल देने के लिए अमेरिका और यूरोपीय देश लगातार प्रयासरत हैं। अमेरिका ने एक विशेष शांति दल इज़राइल भेजा है और दोनों पक्षों से बातचीत के संकेत दिए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने बयान जारी कर कहा कि “क्षेत्र में स्थिरता बनाना हमारी प्राथमिकता है।” यूरोपीय संघ ने भी अपील की है कि दोनों पक्ष तुरंत युद्धविराम की ओर कदम बढ़ाएं। हालांकि, हमास और इज़राइल दोनों अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं। अमेरिका इज़राइल का पुराना सहयोगी है, लेकिन इस बार उसने मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं पर चिंता जताई है। वहीं फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया है जिसमें संघर्ष विराम, मानवीय सहायता और दीर्घकालिक समाधान की सिफारिश की गई है। अभी तक कोई बड़ा नतीजा नहीं निकला है, लेकिन वैश्विक शक्तियों का हस्तक्षेप इस बात का संकेत है कि वे युद्ध को फैलने से रोकना चाहते हैं। फिर भी, जमीनी हालात इतने जटिल हैं कि कोई भी समाधान आसान नहीं लगता।
13. मुस्लिम देशों की सामूहिक प्रतिक्रिया और एकजुटता
गाज़ा और लेबनान में बढ़ते संघर्ष पर मुस्लिम देशों ने सामूहिक रूप से नाराजगी व्यक्त की है। तुर्की, कतर, सऊदी अरब, पाकिस्तान, मलेशिया और ईरान समेत कई देशों ने इज़राइल की सैन्य कार्रवाई की निंदा की है। कुछ देशों ने इज़राइली राजदूतों को तलब किया है और संयुक्त अरब लीग की आपात बैठक बुलाने की मांग की है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने कहा कि “हम चुप नहीं बैठेंगे जब निर्दोष लोग मारे जा रहे हों।” कतर ने राहत सामग्री भेजने का ऐलान किया है, वहीं पाकिस्तान में व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर ‘#FreePalestine’ एक बार फिर ट्रेंड कर रहा है और मुस्लिम समुदाय में एकजुटता की भावना तेज हो गई है। हालांकि, फिलहाल कोई सैन्य या आर्थिक प्रतिबंध की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन कूटनीतिक दबाव निरंतर बढ़ रहा है। विश्लेषक मानते हैं कि यदि मुस्लिम देशों ने सामूहिक रूप से आर्थिक प्रतिबंध लगाए, तो इज़राइल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव काफी बढ़ सकता है। यह एक ऐसा मोर्चा है जिसे इज़राइल भी नजरअंदाज नहीं कर सकता।
14. संघर्ष में अब तक की मौतें और हताहतों का आंकड़ा
इस संघर्ष में अब तक हज़ारों लोग जान गंवा चुके हैं और घायलों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। गाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 10,000 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं, जिनमें 40% से ज्यादा महिलाएं और बच्चे हैं। वहीं, इज़राइल ने भी हमलों में अपने 1,200 से ज्यादा सैनिकों और नागरिकों की मौत की पुष्टि की है। लेबनान में भी सैकड़ों जानें गई हैं, जिनमें अधिकतर आम नागरिक हैं। अस्पतालों में जगह नहीं है, शवों को ठिकाने लगाने में भी समस्या हो रही है। कई परिवारों ने एक साथ कई सदस्य खो दिए हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इसे “संवेदनशील जनसंहार” कहा है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गाज़ा में हर घंटे किसी न किसी इलाके में मौतें हो रही हैं। इस आंकड़े की भयावहता दुनिया को सोचने पर मजबूर कर रही है कि आखिर यह संघर्ष किस ओर जा रहा है और इसका अंत कब होगा। यह आंकड़े केवल संख्या नहीं, बल्कि उन परिवारों की त्रासदी हैं जो अब कभी भी पहले जैसे नहीं रह पाएंगे।
15. संघर्ष की जड़ें: गाज़ा और लेबनान में लंबे समय से चले आ रहे तनाव
गाज़ा और लेबनान में वर्तमान संघर्ष अचानक नहीं भड़का है, इसकी जड़ें दशकों पुरानी हैं। गाज़ा पर 2007 से हमास का नियंत्रण है और इज़राइल इसे आतंकवादी संगठन मानता है। वहीं, लेबनान में हिज़बुल्लाह का प्रभाव क्षेत्रीय राजनीति में लंबे समय से चुनौती बना हुआ है। 1948 के अरब-इज़राइल युद्ध से लेकर 1967 के छह दिवसीय युद्ध और फिर 2006 के लेबनान युद्ध तक, इन क्षेत्रों में लगातार संघर्ष होता आया है। गाज़ा में इज़राइल की घेराबंदी और फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्भर राष्ट्र की मांग ने जनभावनाओं को भड़काया है। लेबनान में हिज़बुल्लाह की मौजूदगी इज़राइल के लिए एक निरंतर खतरा मानी जाती है। यह पूरा क्षेत्र भू-राजनीतिक तनाव, धार्मिक ध्रुवीकरण और वैश्विक शक्तियों के हस्तक्षेप का केंद्र बन चुका है। वर्तमान संघर्ष इन वर्षों से चले आ रहे तनाव और अविश्वास का ही परिणाम है। जब तक इन जड़ों को समझकर समाधान नहीं खोजा जाएगा, तब तक इस संघर्ष की आग बुझना असंभव प्रतीत होता है।
16. संभावित पूर्ण युद्ध की आशंका और संकेत
गाज़ा और लेबनान में लगातार बढ़ रहे हमलों और सैन्य कार्रवाई से अब यह आशंका गहराने लगी है कि यह संघर्ष किसी भी वक्त पूर्ण युद्ध का रूप ले सकता है। इज़राइल ने अपनी सीमाओं पर रिजर्व आर्मी को तैनात करना शुरू कर दिया है, जबकि हिज़बुल्लाह ने भी अपने पूरे नेटवर्क को अलर्ट पर रखा है। अंतरराष्ट्रीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर लेबनान और गाज़ा से समन्वित हमले इज़राइल पर जारी रहे, तो वह पूरे क्षेत्र में ज़बरदस्त सैन्य कार्रवाई शुरू कर सकता है। वहीं ईरान, सीरिया और यमन जैसे देशों के साथ गठजोड़ करने वाले संगठन भी सक्रिय हो सकते हैं। इससे यह टकराव सीमित न रहकर क्षेत्रीय युद्ध में बदल सकता है। यूएन ने चेतावनी दी है कि अगर युद्ध भड़का तो यह केवल इज़राइल और फिलिस्तीन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि मध्य पूर्व की शांति और वैश्विक तेल आपूर्ति पर भी गहरा असर डालेगा। फिलहाल सभी पक्षों में तनाव इतना अधिक है कि छोटी सी चिंगारी भी बड़े विस्फोट का कारण बन सकती है।
17. अर्थव्यवस्था पर पड़ता प्रभाव – लेबनान और इज़राइल दोनों में
इस संघर्ष का आर्थिक प्रभाव भी गंभीर होता जा रहा है। इज़राइल की शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट दर्ज की गई है, और पर्यटन उद्योग लगभग बंद हो चुका है। लेबनान, जो पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है, अब और अधिक अस्थिर हो गया है। व्यापारिक गतिविधियां ठप हो गई हैं और मुद्रा लगातार अवमूल्यन की ओर बढ़ रही है। सीमावर्ती इलाकों से व्यवसायों का पलायन हो रहा है। दोनों देशों के बजट पर युद्ध खर्च का दबाव बढ़ रहा है। इज़राइल में युद्ध खर्च के कारण महंगाई बढ़ने की आशंका जताई जा रही है, जबकि लेबनान में आवश्यक वस्तुओं की किल्लत गहराती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय निवेशक क्षेत्र में अस्थिरता के चलते पीछे हट रहे हैं। विश्व बैंक और IMF जैसी संस्थाएं स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं, लेकिन फिलहाल किसी आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा नहीं हुई है। यह स्पष्ट है कि अगर युद्ध लंबा चला तो इसकी आर्थिक मार दोनों देशों की आम जनता को सीधे झेलनी पड़ेगी।
18. संघर्ष में मीडिया की भूमिका और प्रोपेगैंडा युद्ध
इस पूरे संघर्ष में मीडिया की भूमिका दो धारी तलवार जैसी साबित हो रही है। एक ओर मीडिया ने जमीनी सच्चाई को उजागर कर लोगों को जागरूक किया है, तो दूसरी ओर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर झूठी खबरें और प्रोपेगैंडा तेजी से फैल रहे हैं। दोनों पक्षों के समर्थक अपने-अपने दृष्टिकोण को सही ठहराने के लिए वीडियो, फोटो और आंकड़ों का उपयोग कर रहे हैं, जिनमें से कई बाद में फर्जी पाए जाते हैं। कुछ चैनलों पर युद्ध को लेकर भावनात्मक अपील की जा रही है, जिससे जनता की सोच और भावनाएं उग्र हो रही हैं। पत्रकारों के लिए यह क्षेत्र अत्यंत खतरनाक हो गया है — अब तक कई पत्रकार हमलों में घायल या मारे जा चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने निष्पक्ष रिपोर्टिंग पर बल दिया है, लेकिन युद्ध की परिस्थितियों में यह संभव नहीं हो पा रहा। यह प्रोपेगैंडा युद्ध दर्शाता है कि आज की लड़ाई केवल मैदान में नहीं, बल्कि दिमाग और डिजिटल माध्यमों में भी लड़ी जा रही है।
19. जनता की प्रतिक्रिया – विरोध प्रदर्शन और सोशल मीडिया पर उबाल
गाज़ा और लेबनान में हो रहे संघर्ष को लेकर आम जनता का गुस्सा सड़कों पर दिखाई दे रहा है। इज़राइल, अमेरिका, यूके, जर्मनी, पाकिस्तान, तुर्की और भारत जैसे देशों में लोग विरोध रैलियों में भाग ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर ‘#StopTheWar’, ‘#FreePalestine’, ‘#StandWithIsrael’ जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। आम लोग युद्ध से निराश हैं और शांति की मांग कर रहे हैं। युवाओं में भारी उबाल है, जो युद्ध को समाप्त कर कूटनीति को अवसर देने की अपील कर रहे हैं। कई स्थानों पर मानव श्रृंखला बनाकर युद्ध के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं। दूसरी ओर, कुछ कट्टर समर्थक भी हैं जो अपने-अपने देश की सैन्य कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं। इससे डिजिटल दुनिया में वैचारिक टकराव भी तेज हो गया है। यह जन-आक्रोश बताता है कि युद्ध चाहे किसी भी कारण से हो, अंत में उसकी कीमत आम इंसानों को ही चुकानी पड़ती है।
ये भी पढ़े- बाराबंकी से तेहरान तक: कैसे ईरान के सर्वोच्च नेता के पूर्वजों की जड़ें जुड़ी हैं उत्तर प्रदेश से
20. क्या है आगे की राह? संघर्ष समाधान की संभावनाएं
इस समय सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस संघर्ष का कोई शांतिपूर्ण समाधान संभव है? विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सभी पक्ष बातचीत की मेज पर नहीं आते और आपसी समझदारी नहीं दिखाते, तब तक यह संघर्ष रुकने वाला नहीं है। संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका मध्यस्थता की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विश्वास की कमी और पुरानी दुश्मनी आड़े आ रही है। फिलहाल एक अस्थायी संघर्षविराम संभव है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान तभी होगा जब गाज़ा, लेबनान और इज़राइल की राजनीतिक नेतृत्व इच्छाशक्ति दिखाए। ईरान जैसे बाहरी ताकतों की भूमिका भी अहम रहेगी। फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव फिर से चर्चा में है, लेकिन इज़राइल की सुरक्षा चिंताएं भी जायज़ हैं। इसलिए, समाधान एकपक्षीय नहीं बल्कि समग्र और बहुपक्षीय वार्ता से ही निकलेगा। यही एकमात्र राह है जो इस धधकते क्षेत्र को शांति की ओर ले जा सकती है।