FOMC क्या है और इसका आर्थिक महत्व

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FOMC का पूरा नाम Federal Open Market Committee है, जो अमेरिका के केंद्रीय बैंक Federal Reserve (Fed) का एक प्रमुख घटक है। यह समिति अमेरिकी मौद्रिक नीति (Monetary Policy) तय करने की ज़िम्मेदारी निभाती है, विशेष रूप से interest rates और open market operations को लेकर। FOMC साल में आठ बार बैठकें करती है, जिनमें देश की आर्थिक स्थिति, महंगाई (Inflation), बेरोज़गारी (Unemployment), और आर्थिक विकास (Economic Growth) जैसे पहलुओं पर चर्चा की जाती है।

इन बैठकों का मुख्य उद्देश्य होता है अमेरिकी अर्थव्यवस्था को स्थिर और मजबूत बनाए रखना। FOMC तय करता है कि Federal Funds Rate (जिस पर बैंक एक-दूसरे से रातोंरात उधार लेते हैं) को घटाना है, बढ़ाना है या स्थिर रखना है। जब यह रेट बढ़ाई जाती है, तो डॉलर मजबूत होता है और महंगाई पर अंकुश लगता है। वहीं, जब रेट घटाई जाती है, तो बाजार में नकदी बढ़ती है, निवेश को बढ़ावा मिलता है, लेकिन महंगाई का जोखिम भी बढ़ जाता है।

FOMC की नीतियों का प्रभाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह वैश्विक बाजारों पर भी असर डालता है, खासकर gold, stock markets, और forex markets पर। यही वजह है कि पूरी दुनिया के निवेशक और विश्लेषक FOMC की हर घोषणा को बहुत ध्यान से सुनते हैं और उसका मूल्यांकन करते हैं।

फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों पर आज की घोषणा (18 जून 2025)

आज की FOMC बैठक में अमेरिकी केंद्रीय बैंक Federal Reserve ने अपनी मौद्रिक नीति में कोई बदलाव नहीं किया। Federal Funds Rate को पहले की तरह 4.25% से 4.50% की सीमा में ही बनाए रखने का निर्णय लिया गया। यह लगातार चौथी बार है जब फेड ने ब्याज दरों को यथावत रखा है।

फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने स्पष्ट किया कि फेड की प्राथमिकता अब भी महंगाई को 2% के लक्ष्य तक लाने की है। उनके अनुसार, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कुछ क्षेत्रों में सुधार तो हुआ है लेकिन महंगाई अभी भी अपेक्षित स्तर से अधिक बनी हुई है।

फेड ने यह भी संकेत दिया कि 2025 के अंत तक 1 या 2 बार ब्याज दरों में कटौती संभव है, लेकिन यह पूरी तरह से आर्थिक आंकड़ों और वैश्विक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।


मौद्रिक नीति का स्वरूप

फेड ने अपनी नीति में “patient stance” बनाए रखा है। यानी वह जल्दबाज़ी में दरें कम करने के पक्ष में नहीं है। यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब बाजार में दरों में कटौती की उम्मीद बनी हुई थी।

महंगाई दर अभी भी 2.1% से 2.5% के बीच बनी हुई है, जबकि बेरोज़गारी दर में हल्की बढ़ोतरी देखी गई है। फेड के लिए यह मिश्रित संकेत हैं, और वह हर कदम को सतर्कता के साथ उठा रहा है।


शेयर बाजार, डॉलर और बॉन्ड यील्ड पर असर

ब्याज दरों को स्थिर रखने के फैसले का असर सीधे बाजारों पर पड़ा।

  • अमेरिकी शेयर बाजार में हल्की बढ़त देखी गई।
  • डॉलर इंडेक्स मजबूत रहा, जिससे वैश्विक मुद्राओं पर दबाव बना।
  • बॉन्ड यील्ड में उतार-चढ़ाव बना रहा, जिसमें 10-वर्षीय यील्ड लगभग 4.36% और 2-वर्षीय यील्ड लगभग 3.94% के आसपास रही।

निष्कर्ष

  • वर्तमान ब्याज दर: 4.25% – 4.50% (बिना बदलाव)
  • नीति रुख: सतर्क और धैर्यशील
  • मुख्य चिंताएं: महंगाई, वैश्विक अनिश्चितता, घरेलू आर्थिक दबाव
  • बाजार पर असर: शेयर बाजार स्थिर, डॉलर मजबूत, सोने पर मिश्रित प्रभाव

निवेशकों की मनोदशा में बदलाव

फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों को यथावत रखने के फैसले और भविष्य में कटौती के अस्पष्ट संकेतों ने निवेशकों की मनोदशा को प्रभावित किया है। पहले जहां बाजार में जून या जुलाई तक दरों में कटौती की उम्मीद बनी हुई थी, वहीं अब यह आशा धीरे-धीरे सितंबर 2025 या उसके बाद तक टलती दिखाई दे रही है।

1. अनिश्चितता में सतर्कता

निवेशक अब “wait and watch” के मूड में हैं। उन्होंने जोखिमभरे निवेशों से कुछ हद तक दूरी बना ली है और अधिकतर safe-haven assets जैसे सोना, बॉन्ड और डॉलर में धन लगा रहे हैं। हालांकि सोने की कीमतों में भी उतार-चढ़ाव बना हुआ है, लेकिन भू-राजनीतिक तनाव और ब्याज दरों की स्थिरता ने इसमें स्थिरता का भाव बनाए रखा है।

2. शेयर बाजार में हलचल

फेड की घोषणा के बाद अमेरिकी और वैश्विक शेयर बाजारों में मिला-जुला रुख देखा गया।

  • टेक सेक्टर और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में थोड़ी कमजोरी रही,
  • जबकि डिफेंसिव सेक्टर्स जैसे FMCG और हेल्थकेयर में निवेशक आश्रय ढूंढ़ते दिखे।

3. भारतीय निवेशकों की प्रतिक्रिया

भारतीय निवेशक भी इस वैश्विक फैसले पर नजरें टिकाए हुए हैं। डॉलर की मजबूती और विदेशी निवेशकों की रणनीति में बदलाव के चलते भारतीय स्टॉक मार्केट में भी FII (Foreign Institutional Investors) की चाल मंद पड़ सकती है। इससे निफ्टी और बैंक निफ्टी में आने वाले दिनों में कुछ दबाव देखने को मिल सकता है।

4. निवेश मानसिकता में बदलाव

  • अब निवेशक लंबी अवधि की रणनीति अपना रहे हैं।
  • कम जोखिम वाले विकल्पों जैसे स्वर्ण ETF, सरकारी बॉन्ड और म्यूचुअल फंड SIP की ओर झुकाव बढ़ा है।
  • वहीं, क्रिप्टोकरेंसी और छोटे-कैप स्टॉक्स से फिलहाल दूरी बनाई जा रही है।

भारत में सोने की मांग पर असर

फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों को स्थिर बनाए रखने का सीधा प्रभाव भारत जैसे सोने की खपत वाले देशों पर भी पड़ा है। वैश्विक स्तर पर सोने की कीमतों में अस्थिरता के चलते भारतीय बाजार में निवेशक और उपभोक्ता दोनों ही नई रणनीति अपना रहे हैं।

1. सोने की खुदरा मांग में सुस्ती

हालांकि जून का महीना पारंपरिक रूप से शादी-विवाह और त्योहारों के कारण सोने की मांग के लिए अनुकूल माना जाता है, लेकिन इस वर्ष फेड की नीति और डॉलर की मजबूती के कारण कीमतों में आई तेजी ने आम ग्राहकों को थोड़ा पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है।

  • भारत में आज सोने की कीमत लगभग ₹70,000 प्रति 10 ग्राम (24 कैरेट) के करीब पहुंच गई है।
  • यह उच्च स्तर सामान्य ग्राहकों के लिए मूल्य संवेदनशीलता (price sensitivity) बढ़ाता है।

2. ज्वेलरी सेक्टर पर असर

ज्वेलरी कारोबारियों को उम्मीद थी कि जून-जुलाई में अच्छी बिक्री होगी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय घटनाओं और घरेलू कीमतों में तेजी ने ग्राहकों की क्रय शक्ति पर असर डाला है।

  • ग्राहक अब कम वजन या हल्के डिज़ाइन की ज्वेलरी को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • ग्राम आधारित खरीद में गिरावट आई है जबकि मूल्य आधारित खरीद स्थिर बनी हुई है।

3. निवेश के रूप में सोना

हालांकि ज्वेलरी की मांग थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन निवेशक अब भी सोने को सुरक्षित विकल्प मानते हैं।

  • सोने में निवेश करने वाले ग्राहक अब सोने के ETF, डिजिटल गोल्ड और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) जैसे विकल्पों की ओर अधिक झुक रहे हैं।
  • यह वर्ग सोने को डॉलर और इक्विटी बाजार की अस्थिरता से बचाव का जरिया मानता है।

4. रुपये में गिरावट का दोहरा प्रभाव

भारतीय रुपये में डॉलर के मुकाबले कमजोरी का असर भी सोने की कीमतों पर सीधा दिखता है।

  • डॉलर महंगा होने से आयातित सोना और भी महंगा हो गया है।
  • इससे ग्राहकों के लिए सोना खरीदना और मुश्किल हो गया है, जो कि आयात पर पूरी तरह निर्भर देश के लिए चिंताजनक है।

निष्कर्ष

फेड की नीति और वैश्विक अनिश्चितता के कारण भारत में सोने की मांग में खपत आधारित मांग में कुछ कमी आई है, लेकिन निवेश आधारित मांग में स्थिरता और संभावित वृद्धि देखी जा रही है।
आने वाले महीनों में अगर कीमतें स्थिर होती हैं या महंगाई में राहत मिलती है, तो घरेलू बाज़ार में सोने की खरीद फिर से रफ्तार पकड़ सकती है।

भारत में सोने के दाम पर FOMC का असर

फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति यानी ब्याज दरों से जुड़े फैसले का सीधा असर केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसका गहरा प्रभाव भारत जैसे देशों में सोने के दामों पर भी देखा जाता है। 18 जून 2025 को हुई FOMC बैठक में जब अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों को 4.25%–4.50% पर स्थिर रखने का ऐलान किया, तो उसका असर भारतीय सोने के बाज़ार में भी तुरंत दिखाई दिया।

1. डॉलर मजबूत, सोना महंगा

फेड द्वारा ब्याज दर में कोई कटौती न करने से अमेरिकी डॉलर और अधिक मजबूत हो गया। डॉलर मजबूत होता है तो आमतौर पर गोल्ड की अंतरराष्ट्रीय कीमतें गिरती हैं, लेकिन भारत में उल्टा असर हुआ क्योंकि रुपये में कमजोरी और आयात शुल्क के कारण सोना महंगा बना रहा।

  • 18 जून को भारत में 24 कैरेट सोना ₹70,200 प्रति 10 ग्राम के आसपास ट्रेड कर रहा है।
  • पिछले सप्ताह के मुकाबले इसमें लगभग ₹1,500 से ₹2,000 की तेजी देखी गई।

2. रुपया कमजोर, आयात महंगा

चूंकि भारत अपना लगभग सारा सोना आयात करता है, इसलिए डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी का सीधा असर सोने के आयात मूल्य पर होता है।

  • इससे सोने की घरेलू कीमतें बढ़ती हैं, भले ही वैश्विक बाजार में गिरावट हो।
  • निवेशकों के लिए यह स्थिति “confused sentiment” वाली बन जाती है – एक ओर कीमतें ऊंची हैं, दूसरी ओर आर्थिक अनिश्चितता से सुरक्षा की जरूरत भी महसूस हो रही है।

3. मांग में आई गिरावट

उच्च कीमतों के कारण देश के कई हिस्सों में खुदरा ज्वेलरी मांग में गिरावट दर्ज की गई है। ग्राहकों ने फिलहाल खरीदारी को टालना शुरू कर दिया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कीमत संवेदनशीलता ज्यादा होती है।

4. निवेशकों का बढ़ता भरोसा

दूसरी तरफ, निवेशक वर्ग सोने को अभी भी एक ‘सेफ हेवन एसेट’ मानकर उसमें निवेश बनाए हुए है।

  • सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB), गोल्ड ETF और डिजिटल गोल्ड में निवेश में बढ़ोतरी देखी गई है।
  • निवेशक मानते हैं कि ब्याज दरों में निकट भविष्य में कटौती होगी, जिससे गोल्ड की कीमतें और ऊपर जा सकती हैं।

निष्कर्ष

FOMC के फैसले ने भारतीय सोने की कीमतों को ऊपर की ओर धकेला है। डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी के कारण भारत में सोना महंगा हुआ है, जिससे खरीदारी प्रभावित हुई है। हालांकि आर्थिक अनिश्चितताओं के इस दौर में सोना अब भी निवेशकों के लिए एक सुरक्षित विकल्प बना हुआ है।

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तकनीकी चार्ट्स में गोल्ड का ट्रेंड

18 जून 2025 को FOMC के ब्याज दरों पर फैसले के बाद सोने की कीमतों में आई हलचल ने तकनीकी विश्लेषकों को सतर्क कर दिया है। निवेशकों और ट्रेडर्स की नजर अब पूरी तरह से गोल्ड के तकनीकी चार्ट्स पर टिकी हुई है, जो अगले कुछ दिनों और हफ्तों के ट्रेंड की दिशा तय करने में मदद करते हैं।

1. डेली चार्ट: मजबूत अपट्रेंड

सोने के डेली चार्ट पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि कीमतें अब भी एक मजबूत अपट्रेंड चैनल के भीतर चल रही हैं।

  • 200-डे SMA (Simple Moving Average) ₹66,500 के आसपास सपोर्ट दे रहा है।
  • मौजूदा कीमतें ₹70,000 के ऊपर ट्रेड कर रही हैं, जो यह दिखाता है कि लॉन्ग टर्म बुलिश ट्रेंड अब भी बरकरार है।

2. RSI इंडिकेटर: ओवरबॉट ज़ोन में

Relative Strength Index (RSI) अभी 74 के आसपास है, जो इसे ओवरबॉट जोन (Overbought Zone) में दिखाता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि निकट भविष्य में कीमतों में थोड़ी बहुत प्रॉफिट बुकिंग देखने को मिल सकती है।

3. MACD इंडिकेटर: बाय सिग्नल जारी

MACD (Moving Average Convergence Divergence) लाइन अब भी सिग्नल लाइन के ऊपर बनी हुई है, जो बाजार में बुलिश सेंटिमेंट को दर्शाती है।

  • हालांकि, दोनों लाइनों में अंतर थोड़ा कम हो रहा है, जो दर्शाता है कि गति में थोड़ी मंदी आ सकती है।

4. इम्पोर्टेन्ट सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल

  • Immediate Resistance: ₹71,200 – ₹71,500
  • Immediate Support: ₹69,300 – ₹68,800
  • अगर सोने की कीमत ₹71,500 को तोड़ देती है तो अगला लक्ष्य ₹72,800–₹73,000 तक हो सकता है।
  • नीचे की ओर ₹68,800 के नीचे ब्रेक आने पर ₹67,500 तक की गिरावट संभव है।

5. फिबोनैचि रिट्रेसमेंट लेवल

हालिया स्विंग हाई और स्विंग लो को जोड़कर फिबोनैचि रिट्रेसमेंट निकाला जाए तो

  • 61.8% रिट्रेसमेंट लेवल ₹69,100 पर आता है, जो एक मजबूत सपोर्ट ज़ोन बनाता है।
  • यह स्तर ट्रेडर्स के लिए एक महत्त्वपूर्ण एंट्री पॉइंट हो सकता है।

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