ट्रांसजेंडर समावेशन में चुनौतियाँ

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ट्रांसजेंडर समुदाय एक ऐसा हिस्सा है जो समाज के हर कोने में मौजूद है, फिर भी अनदेखा, अपमानित और बहिष्कृत किया जाता है। ट्रांसजेंडर लोगों को न सिर्फ सामाजिक स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, बल्कि कानूनी, शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है। इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि ट्रांसजेंडर समावेशन के मार्ग में कौन-कौन सी चुनौतियाँ आती हैं और कैसे इनका समाधान किया जा सकता है।
1. सामाजिक स्वीकृति की कमी
ट्रांसजेंडर लोगों को सबसे पहली और बड़ी चुनौती समाज की सोच से मिलती है। समाज आज भी ट्रांसजेंडर पहचान को या तो मजाक समझता है या उसे अस्वीकार करता है। ट्रांसजेंडर बच्चों को स्कूल में, ट्रांसजेंडर युवाओं को कॉलेज में और ट्रांसजेंडर व्यस्कों को नौकरी में लगातार उपेक्षा और अपमान सहना पड़ता है।
ट्रांसजेंडर होने के नाते उन्हें सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता। लोग ट्रांसजेंडर पहचान को विकृति मानते हैं, जोकि पूरी तरह से गलत सोच है।
2. शिक्षा में ट्रांसजेंडर के लिए अवसरों की कमी
ट्रांसजेंडर बच्चों को स्कूल में न तो ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान मिलती है और न ही वे ट्रांसजेंडर के तौर पर खुले मन से शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं। ट्रांसजेंडर छात्रों को तंग किया जाता है, उनका मजाक उड़ाया जाता है, और अक्सर वे पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं।
शिक्षा तंत्र को ट्रांसजेंडर के अनुकूल बनाना अत्यंत आवश्यक है ताकि ट्रांसजेंडर बच्चे भी अन्य बच्चों की तरह समान अवसर पा सकें।
3. रोजगार में ट्रांसजेंडर की स्थिति
अधिकांश ट्रांसजेंडर लोगों को नौकरी नहीं मिलती। ट्रांसजेंडर के रूप में जब वे किसी साक्षात्कार में जाते हैं, तो उन्हें उनकी पहचान के कारण बाहर कर दिया जाता है। कंपनियां ट्रांसजेंडर को नियुक्त करने में हिचकिचाती हैं।
सरकारी नौकरियों में भी ट्रांसजेंडर के लिए पर्याप्त आरक्षण या सुविधा नहीं है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता ज़रूरी है, जो बिना रोजगार के संभव नहीं।
4. स्वास्थ्य सुविधाओं में भेदभाव
ट्रांसजेंडर लोग जब अस्पताल जाते हैं तो उन्हें उनकी पहचान के कारण नजरअंदाज किया जाता है। डॉक्टर या स्टाफ उनके साथ सहानुभूति नहीं दिखाते।
विशेष रूप से ट्रांसजेंडर की स्वास्थ्य ज़रूरतें जैसे हार्मोन थेरेपी, मानसिक स्वास्थ्य समर्थन, आदि के लिए सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को ट्रांसजेंडर के अनुकूल बनाना आवश्यक है।
5. कानूनी मान्यता और अधिकारों की कमी
हालांकि भारत में ट्रांसजेंडर को पहचान दी गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर ट्रांसजेंडर के लिए बहुत सी बाधाएं हैं। पहचान पत्रों में ट्रांसजेंडर का उल्लेख अभी भी एक लंबी प्रक्रिया है।
कई बार ट्रांसजेंडर लोगों को कानूनी सहारे नहीं मिलते जब वे हिंसा या भेदभाव का शिकार होते हैं। ट्रांसजेंडर को न केवल पहचान, बल्कि सुरक्षा और सम्मान का अधिकार भी मिलना चाहिए।
6. मानसिक स्वास्थ्य पर असर
लगातार उपेक्षा, भेदभाव और तिरस्कार के चलते ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग मानसिक तनाव, डिप्रेशन और आत्महत्या जैसे संकट से जूझते हैं। ट्रांसजेंडर की मानसिक स्थिति को समझना और उन्हें भावनात्मक समर्थन देना समाज की जिम्मेदारी है।
7. परिवार से अस्वीकार किया जाना
ट्रांसजेंडर बच्चों को उनके परिवार द्वारा ही त्याग दिया जाता है। जब कोई व्यक्ति ट्रांसजेंडर के रूप में अपनी पहचान घोषित करता है तो परिवार उसे घर से निकाल देता है, जोकि ट्रांसजेंडर के लिए बहुत ही दर्दनाक स्थिति होती है।
8. ट्रांसजेंडर के खिलाफ हिंसा
अनेक ट्रांसजेंडर लोगों को शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। सार्वजनिक जगहों पर ट्रांसजेंडर को अपमानित किया जाता है। कानून होने के बावजूद ट्रांसजेंडर की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती।
9. सरकारी योजनाओं में ट्रांसजेंडर की भागीदारी
सरकार ने कुछ योजनाएं चलाई हैं, लेकिन उनका ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन बहुत कमजोर है। ट्रांसजेंडर को इन योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं होती और ना ही प्रक्रिया सरल होती है।
ट्रांसजेंडर समुदाय को इनसे जोड़ने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
10. मीडिया और समाज में ट्रांसजेंडर की छवि
मीडिया में ट्रांसजेंडर को हास्यास्पद रूप में दिखाया जाता है। फिल्मों, टीवी शोज़ और विज्ञापनों में ट्रांसजेंडर को मनोरंजन का साधन बना दिया गया है, जोकि ट्रांसजेंडर की छवि को और भी खराब करता है।
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ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कानूनी सुरक्षा
1. संविधानिक अधिकार
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है, जिसमें ट्रांसजेंडर भी शामिल हैं।
- अनुच्छेद 14: ट्रांसजेंडर को कानून की नजर में समानता प्राप्त है।
- अनुच्छेद 15 और 16: ट्रांसजेंडर के खिलाफ भेदभाव को रोका गया है।
- अनुच्छेद 19(1)(a): ट्रांसजेंडर को अपनी पहचान व्यक्त करने की स्वतंत्रता है।
- अनुच्छेद 21: ट्रांसजेंडर को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट का नालसा बनाम भारत सरकार फैसला (2014)
नालसा बनाम भारत सरकार – ऐतिहासिक निर्णय (2014)
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसने ट्रांसजेंडर समुदाय को “तीसरे लिंग” के रूप में मान्यता दी। इस मामले में याचिकाकर्ता थे — नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी (NALSA), जिन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए संवैधानिक अधिकारों की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ट्रांसजेंडर भी भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा हैं और उन्हें उनके लिंग की पहचान के अनुसार जीने का अधिकार है।
इस निर्णय में कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर केवल पुरुष या स्त्री की श्रेणी में नहीं आते, इसलिए उन्हें “तीसरे लिंग” की कानूनी मान्यता दी जानी चाहिए। यह फैसला अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध), और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) पर आधारित था।
इस निर्णय के प्रमुख बिंदु:
- ट्रांसजेंडर को कानूनी पहचान मिलनी चाहिए।
- ट्रांसजेंडर को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में समान अवसर मिलें।
- ट्रांसजेंडर को अपनी पहचान को छिपाने के लिए मजबूर न किया जाए।
- सरकार को ट्रांसजेंडर के लिए सामाजिक और आर्थिक योजनाएं लागू करनी होंगी।
- ट्रांसजेंडर को मानव अधिकारों की पूरी तरह रक्षा मिलनी चाहिए।
इस फैसले के बाद ट्रांसजेंडर के जीवन में उम्मीद की एक किरण जगी। अब उन्हें न केवल समाज में पहचान मिली, बल्कि कानूनन उनका अस्तित्व भी स्वीकार किया गया।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2019
2014 के नालसा फैसले के बाद, भारत सरकार ने ट्रांसजेंडर अधिकारों की रक्षा के लिए एक विशेष कानून बनाया — ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2019। इसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर समुदाय को समाज में सम्मानपूर्वक और सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार देना है।
इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान:
- कानूनी पहचान:
ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अब कानूनी रूप से “ट्रांसजेंडर” के रूप में अपनी पहचान दर्ज करवाने का अधिकार है। जिला मजिस्ट्रेट के पास आवेदन देकर ट्रांसजेंडर प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा सकता है। - लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया:
यदि कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति सर्जरी के माध्यम से लिंग परिवर्तन कराना चाहता है, तो इसके बाद नए प्रमाण पत्र और पहचान दस्तावेज़ जारी करवाने की कानूनी सुविधा इस अधिनियम में दी गई है। - पुनर्वास केंद्रों की स्थापना:
यदि किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को उसका परिवार या समाज निकाल देता है, तो सरकार को उसके लिए पुनर्वास केंद्र की सुविधा देनी होगी जहाँ उसे आश्रय, शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार संबंधी सहायता मिलेगी। - शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में भेदभाव निषेध:
कोई भी संस्था, चाहे वह सरकारी हो या निजी, ट्रांसजेंडर के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकती। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, कार्यालय – सभी जगहों पर ट्रांसजेंडर को समान व्यवहार और सुविधाएं देना अनिवार्य है। - हिंसा और उत्पीड़न के विरुद्ध सुरक्षा:
यदि किसी ट्रांसजेंडर के साथ शारीरिक, मानसिक या यौन उत्पीड़न होता है, तो इसके लिए कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है। अपराध करने वाले को सजा और जुर्माने की व्यवस्था इस अधिनियम में है। - राष्ट्रीय परिषद (National Council for Transgenders):
इस अधिनियम के अंतर्गत एक राष्ट्रीय परिषद की स्थापना की गई है जो ट्रांसजेंडर के अधिकारों की निगरानी करती है, योजनाओं का क्रियान्वयन देखती है और सरकार को सुझाव देती है।
भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों की दिशा में नालसा बनाम भारत सरकार (2014) का फैसला एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसके बाद 2019 का ट्रांसजेंडर अधिनियम कानूनी ढांचे को मजबूत करता है। हालांकि कानून मौजूद हैं, लेकिन इनका प्रभाव तभी होगा जब इन्हें ज़मीन पर पूरी तरह लागू किया जाए।
ट्रांसजेंडर को केवल कानून में नहीं, व्यवहार में भी सम्मान और अवसर मिलने चाहिए। समाज, प्रशासन और सरकार — सभी को मिलकर एक ऐसे भारत की दिशा में काम करना होगा जहां हर ट्रांसजेंडर व्यक्ति गरिमा और सम्मान के साथ जीवन जी सके।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2019
यह अधिनियम विशेष रूप से ट्रांसजेंडर समुदाय की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
मुख्य प्रावधान:
- ट्रांसजेंडर की पहचान को कानूनी मान्यता।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया।
- परिवार या समाज से निकाले जाने की स्थिति में पुनर्वास केंद्रों की व्यवस्था।
- शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक सेवा में भेदभाव पर प्रतिबंध।
- ट्रांसजेंडर के खिलाफ हिंसा, उत्पीड़न या शोषण पर सजा का प्रावधान।
पहचान प्रमाण पत्र की प्रक्रिया
ट्रांसजेंडर व्यक्ति अब जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन कर पहचान पत्र प्राप्त कर सकता है, जिसमें उसका लिंग “ट्रांसजेंडर” घोषित किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति लिंग परिवर्तन कराता है तो नए दस्तावेज़ भी बनाए जा सकते हैं।
अन्य कानूनों में समावेश की आवश्यकता
हालांकि कुछ प्रावधान किए गए हैं, लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय को और अधिक सशक्त बनाने के लिए इन कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है:
- POSH Act (कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कानून): ट्रांसजेंडर को इसमें स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
- स्वास्थ्य अधिकार कानून: ट्रांसजेंडर की विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाए।
- आरक्षण नीति: ट्रांसजेंडर के लिए स्पष्ट आरक्षण की आवश्यकता है।
व्यावहारिक कठिनाइयाँ
हालांकि कानून मौजूद हैं, परन्तु ज़मीनी स्तर पर ट्रांसजेंडर को अभी भी भेदभाव, अस्वीकार और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
- ट्रांसजेंडर के लिए पहचान पत्र बनवाना आज भी एक लंबी प्रक्रिया है।
- पुलिस व प्रशासन अक्सर ट्रांसजेंडर की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेता।
- सामाजिक कल्याण योजनाएं ट्रांसजेंडर तक पहुँच नहीं पातीं।
. जागरूकता और क्रियान्वयन
कानूनी सुरक्षा तब ही प्रभावी होगी जब ट्रांसजेंडर समुदाय को उनके अधिकारों की जानकारी होगी और प्रशासन इनका ईमानदारी से पालन करेगा।
- ट्रांसजेंडर को कानून की जानकारी देने के लिए विशेष अभियान चलाए जाएं।
- सरकारी अधिकारियों, पुलिस और स्वास्थ्य कर्मचारियों को ट्रांसजेंडर के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत में ट्रांसजेंडर के अधिकारों के लिए कानूनी आधार मजबूत हो रहा है, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर बहुत काम बाकी है। कानून केवल कागज़ पर नहीं, ज़िंदगी में लागू होने चाहिए। जब ट्रांसजेंडर व्यक्ति को समाज, सरकार और न्यायपालिका से समान अवसर, सुरक्षा और सम्मान मिलेगा, तभी हम कह सकते हैं कि भारत एक समावेशी और न्यायपूर्ण देश है।